एक एक कर के हमारे छूटते रहबर गए
कुछ अलग रस्ते चले कुछ लौट वापस घर गए
मुस्कुराँएगे कभी तो आन घेरेंगे तभी
जाते जाते दर्द कुछ ऐसे इशारे कर गए
जीत के सेहरे सभी नौसीखियों के सर बंधे
हार के इल्ज़ाम जितने थे हमारे सर गए
रोज़मर्रा के ग़मों से तंग भी आए मगर
ज़िंदगी जैसी मिली भरपूर हम जी कर गए
पूछते थे वो कि फिर वापस तो आएंगे न हम
और हम उनकी इसी मासूमियत पे मर गए
मासूमियत
C K Rawat
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 07/31/2019
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