सरफ़रोशी का जहाँ भरते हैं दम रणबांकुरे
दिल की चर्चाएं वहाँ करते हैं कम रणबांकुरे
जब चलेंगे ख़ुद-ब-ख़ुद ही रास्ते खुल जाएंगे
देर है तो बस बढ़ाने की क़दम रणबांकुरे
चल पड़े तो फिर पलट कर देखते पीछे नहीं
रोकते हैं फिर नहीं अपने क़दम रणबांकुरे
जब तलक न मंज़िलें पा जाएं थक रुकते नहीं
भूख का न प्यास का करते हैं ग़म रणबांकुरे
जान की बाज़ी लगाना रोज़ का ही खेल है
जान खो देने का कुछ करते न ग़म रणबांकुरे
सोचते हैं दुश्मनों का सर क़लम करने के बाद
गोलियाँ चलतीं न गर चलती क़लम रणबांकुरे
दुश्मनों के साथ अब कैसा रहम रणबांकुरे
लौटना अब करके क़िस्सा ही ख़तम रणबांकुरे
क्या सही है क्या ग़लत ये अर्श वाले जानते
कर जो तेरा फ़र्ज़ है तेरा करम रणबांकुरे
रणबांकुरे
C K Rawat
(4)
Poem topics: , Print This Poem , Rhyme Scheme
Submit Spanish Translation
Submit German Translation
Submit French Translation
Write your comment about रणबांकुरे poem by C K Rawat
Surya prakash rawat: Last ki 2 line sabse achchi lagi... Veer ras ki aapki pahali kavita hy shayad.... Par badi sunder likhi hy..
Subhash Lather: Very good poem
Subhash Lather: Very good poem by Sh C K Rawat
Syed Ashraf: Nice poem with appealing theme
Best Poems of C K Rawat