इस चकाचौंध में कुछ भी दिखाई दे न कहीं
जला के रखिएगा कोने में लालटेन कहीं
तुम्हारा दिल है मेरा, मेरा दिल तुम्हारा है
इससे बढ़कर भी होगी न लेन देन कहीं
हम भटकते हुए उनके शहर में आ पहुंचे
हमको न ढूंढने निकले हों वालदेन कहीं
हों तरन्नुमशुदा गूँजें सी सब दिशाओं में
आसमानों से उधर गाए तानसेन कहीं
हम अपने दिल को फ़रिश्तों का घर समझते हैं
इसमें आकर कोई वहशत छुपे लदे न कहीं
ज़िंदगी क्या है इसका मोल समझ कर जीना
न हो बेभाव चली जाए ख़ुदा की देन कहीं
लालटेन
C K Rawat
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 08/16/2019
(2)
Poem topics: , Print This Poem , Rhyme Scheme
Write your comment about लालटेन poem by C K Rawat
Best Poems of C K Rawat