यह खिलौना नहीं है पत्थर का
ऐसे ना खेल दिल है शायर का
ख़ौफ़ है कि फिसल न जाए कोई
फ़र्श उनका है संगेमरमर का
आपको चाहिए नज़र दीगर
काम आसाँ नहीं दीदावर का
है ख़बर फिर बहार आने की
पर भरोसा ही क्या है मुख़बर का
उनके आने में मुद्दतें हैं अभी
और मेहमाँ है कोई पल भर का
खिलौना
C K Rawat
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 06/08/2019
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