मेरा सिर झुक गया शर्म से ,
देखकर भूख से तड़पता इंसान को ,
ज़ुबान बाहर आ गई मेरे हलक से ,
ग़रीबी के हालात में देख निकलती जान को
सरकार कहती है खज़ाना ख़ाली है ,
ये कहना जनता के मुँह पे गाली है ,
मैंने तो हर चीज़ पे कर चुकाया है ,
साबुन , तेल या मेरी कमाई माया है ,
फिर भी खज़ाना इनका ख़ाली पाया है ,
कैसी समस्या घेरे है हिंदुस्तान को ,
मेरा सिर झुक गया शर्म से
सरकारी तनख़्वाह समय पर आती ,
मज़दूर की मज़दूरी घटती ही जाती ,
क्या बताऊँ मिट्टी में मिल गई जवानी ,
सरकारें कर रही हैं अपनी मनमानी ,
जनता को मूर्ख समझे जनता है ज्ञानी ,
भूल गए आज़ादी के उस वरदान को ,
मेरा सिर झुक गया शर्म से
फ़िल्मी सितारे करोड़ों में कमाते भाई ,
हवाई जहाज़ों में घूमें इतनी है कमाई ,
वो बच्चा भला किसे सुनाए अपना दुखड़ा ,
चुराता पकड़ा जाये जो रोटी का टुकड़ा ,
देखने वाला होता है उसका मासूम मुखड़ा ,
कोई तो हल बता मौला इस जहान को ,
मेरा सिर झुक गया शर्म से
सरकारों के झोल Sarkaron Ke Jhol
Yasu Jana
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 05/25/2019
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