(बस मे हु और ये पूरी राह है)
विराम नही लेना है इन पैरों को
आश से नही देखना है इन गैरो को,
शान से चलना है इस पुरे पथ पर
पथ पार करना है सुख-दुख के रथ पर,
न रुकना है न कही पर लेना पनाह है
यहा तो बस मे हू और ये पूरी राह है!1!
अब तो सिर्फ मंजिल दिखाई दे रही है
जो मेरा परिश्रम देखकर मजे ले रही है,
मेरी यारी बस इस प्यारी मंजिल से है
इस मंजिल तक पहुंचने की आश दिल से है,
मेरी आखिरी तक ये मंजिल ही मेरी चाह है
साथ मे कोई भी हो पर बस मे हू और ये पूरी राह है!2!
पुछे राह में कोई क्या तेरी पहचान है
राहगीर मेरा नाम है और राह मेरी पहचान है,
दिल है राह पर और ये मेरी दिलेरी पहचान है
रात का हू उजाला और ये राह अधेरी पहचान है,
पथ का पेड और पहचान मेरी छाँह है
पहचान बस मे हू और ये पूरी राह है!3!
शायद ये राह मुझे याद कर रही है
ये मंजिल मेरी बात कर रही है,
मुसझे मिलने वो नही निरात¹ कर रही है
बात मे मेरी वो दिन से रात कर रही है,
मेरी इस मंजिल पर ही निगाह है
क्योकी बस मे हू और ये पूरी राह है!4!
बीच राह मे हजारो रोडे होगे
कुछ दर्द पीछे दौडे होग,े
पैरो के नीचे कई शोले होगे
पगो मे कई के फफोले होगे,
पर इन दर्दो की मुझे चाह है
क्योकी बस मे हू और ये पूरी राह है!5!
राह की धूप मे धधकना है
राह के दर्दोेे पर हसना है,
काटे कई पैरो में चुभना है
राह के पिन्जरो मे न फसना है,
पर मंजिल के पहले का ये अागाज है
क्योकी अब मे हू और ये पूरी राह है!6!
बस में हू और ये पूरी राह है!
Bj Vishnoi
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 05/15/2019
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